बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
हज व ज़ियारत का तरीक़ा
लेखक
अब्दुस्सबूर नदवी
(फ़ाज़िल किंग सऊद
युनिवर्सिटी, रियाज़)
संपादक त्रिमासिक “तर्जुमानुस्सुन्नह”(उर्दू,हिंदी)
©लेखक के हक़ में सारे अधिकार सुरक्षित
हाजी साहब की सेवा में: प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया: “हज के तौर तरीक़े
मुझ से सीख लो”.इस लिए सहाबए-केराम
ने तफसील के साथ हज का तरीक़ा सीखा, मसाइल और अहकाम जाने, फिर अपने शागिर्दों को
सिखाया, पढ़ाया. यहाँ तक कि मुहद्दिसीन ने हज के सम्बन्ध में ढेर सारी हदीसें जमा
करदीं. अल्लाह इन सब से राज़ी हो.
एक दूसरी हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया: “जिस ने हज
किया,कोई पाप अथवा गुनाह का कार्य नहीं किया तो वोह (गुनाहों से पवित्र हो कर) ऐसे
ही लौटता है जैसे कि उस की माँ ने अभी जना हो. एक तीसरी हदीस में नबी सल्लल्लाहु
अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया:”हज्जे-मक़बूल का
बदला सिर्फ जन्नत है”
प्रिय पाठक! इस मुख़्तसर लेख में हज के सही तरीक़ा की तरफ मार्गदर्शन किया गया
है. मुख़्तसर अंदाज़ अपनाने की वजह से कुछ मसाइल व अहकाम जान बूझ कर छोड़ देने पड़े,
वरना यह लेख लंबा होजाता, अहम व ज़रूरी चीज़ें बयान कर दी गई हैं, यह लेख शैख़ उसैमीन
और शैख़ इब्ने-जिब्रीन(अल्लाह इन सब पर रहम फरमाए) की किताबों के इलावा निजी अनुभव
की रौशनी में तैयार किया गया है. किताब में मस्जिदे-नबवी और किब्लये-अव्वल
मस्जिदे-अक्सा की ज़ियारत व आदाब पर भी रौशनी डाली गयी है. अंतिम में दुआओं का छोटा
सा संग्रह शामिल है, जो इंशाअल्लाह हाजी साहिबान के लिए लाभदायी होंगे.हज के
रूहानी सफर पर जाने वालों से निवेदन है कि लेखक को अपनी दुआओं में याद रख्खेंगे,
अल्लाह तआला आप के हज को क़बूल फरमाए और अपनी रहमत के खजानों से आप की झोलियाँ भर
दे.(आमीन)
मुक़द्दमः: हज इस्लाम का पाँचवां बुनियादी स्तंभ है, अल्लाह तआला फरमाता है:”और लोगों पर
अल्लाह के घर(काबा) का हज फ़र्ज़ है,जो वहाँ तक पहुँचने की ताक़त रख्खें” हदीस शरीफ में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहे
वसल्लम ने फ़रमाया:”इस्लाम की बुन्याद
पांच चीज़ों पर है: १- इस बात की गवाही देना कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं और
मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम अल्लाह के बन्दे और रसूल हैं, २- नमाज़ अदा करना,
३- ज़कात देना, ४- रमज़ान के रोज़े रखना, ५- और हज करना जो जिस्मानी और पैसे की ताकत
रखता हो.”
लिहाज़ा हज जिंदगी में हर उस मुसलमान पर एक बार फ़र्ज़ है जो उस की ताक़त रखता हो,
इस का मतलब है कि आदमी जिस्मानी तौर पे ठीक ठाक हो, सवारी की ताक़त रखता हो,आने
जाने और मक्कः मुकर्रमः में होने वाले खर्च को बर्दाश्त कर सकता हो, अल्बत्तः
औरतों के लिए इन शर्तों के साथ साथ किसी महरिम(वोह मर्द रिश्तेदार जिन से निकाह
जाइज़ न हो) का होना भी ज़रूरी है.
हज तीन तरह के होते हैं: १- इफराद: यानी आदमी सिर्फ हज का एहराम पहनेगा, उमरे का
नहीं. २- किरान: यानी आदमी हज व उमरह की एक साथ निय्यत कर के एहराम बांधे, और कहीं
भी उस एहराम को नहीं उतारेगा, यहाँ तक कि हज खतम होजाये. ३- तमत्तो: यानी आदमी
पहले सिर्फ उमरे का एहराम बांधे फिर उमरा के बाद एहराम उतार दे, हलाल होजाये, फिर
हज के लिए अपने निवास (मक्कः)से दोबारा एहराम बांधे.
इन तीनों किस्मों में सब से अफज़ल हज “तमत्तो” है. नबी
सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने इसी हज की अपने सहाबा को नसीहत की थी, आम तौर से हाजी
साहिबान “तमत्तो” ही करते हैं, और
उपमहादीप भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, और नेपाल के लोग भी हज्जे-तमत्तो की ही
निय्यत करते हैं, इस लिए आगे इसी हज के मुतअल्लिक़ विस्तार से बयान किया जायेगा,
इंशाअल्लाह.
सफर की दुआ: घर से निकलते वक्त यह दुआ पढ़ें: “बिस्मिल्लाहे तवक्कल्तो अलल्लाह, वला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाह” फिर जब सवारी पर सवार हों तो यह दुआ पढ़ें: الله أكبر، الله أكبر، الله أكبر، سُبْحانَ الَّذِي سَخَّرَ لَنَا هَذَا
وَمَا كُنَّا لَهُ مُقْرِنِينَ وَإِنَّا إِلَى رَبِّنَا لَمُنقَلِبُونَ×अल्लाहू अक्बर
अल्लाहू अक्बर अल्लाहू अक्बर सुब्हानल-लज़ी सख्खरा लना हाज़ा वमा कुन्ना लहू
मुक़रिनीन व इन्ना इला रब्बिना लमुन्क़लिबूनØ
मीक़ात: नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने विभिन्न इलाकों से मक्कः
आने वाले हाजियों के लिए कई जगहों को रेखांकित किया है, ताकि हज,उमरह् करने वाले
उन्ही जगहों से एहराम बांधें.
हाजी जब मीक़ात पर पहुंचे तो उस के लिए मुस्तहब (बेहतर) है, कि वोह स्नान करे,
अपने बदन पर खुशबु लगाए, इस लिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने एहराम पहनने से
पहले स्नान किया था, मुसलमानों की माताश्री आयशा (र) का कहना है कि मैं नबी
सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के बदन पर खुशबु मल्ती थी, आप के एहराम पहनने से पहले. इस
मौक़ा पर हाजी के लिए मुस्तहब है कि वोह अपने नाख़ून काट ले, बगल और नाफ के नीचे के
बाल भी मूंड ले.
मीक़ात पाँच हैं: १- जुल-हुलैफा: आज कल इस जगह को अब्यारे-अली कहते हैं, मदीना शहर से मिला
हुआ इलाका है, यहाँ से मक्कः शरीफ की दूरी ४२८ किलोमीटर है.
२- अल-जोह्फा: लाल
समुद्र से सटे एक गांव का नाम है, आज कल वीरान व बे-आबाद है, इस इलाके में एक शहर “रागिब” है, जहाँ से आज कल लोग
एहराम बांधते हैं, यहाँ से मक्कः १८६ किलोमीटर है.
३- यलम्लम: यमन के
रास्ते पर एक वादी का नाम है, यह वादी मक्कः से १२० किलोमीटर की दूरी पर है, आजकल
लोग वादी से करीब एक गाँव “सादियः” से एहराम बांधते हैं, नेपाल, भारत, और पाकिस्तान के इलावा
पूर्वी एशिया के तमाम देशों के हाजी यहीं से हज की निय्यत करते हैं, हवाई जहाज़ से
सफर करने वाले हाजियों को जहाज़ के अंदर ही जगह आने पर बता दिया जाता है. ताकि हाजी
साहिबान वहाँ से निय्यत करलें.
४- क़रनुल-मनाज़िल: इस
का मौजूदा नाम “अस्सैलुल-कबीर” है, यहाँ से मक्कः ७५ किलोमीटर की दूरी पर है. यह मीक़ात ताईफ शहर से मिला हुआ
है.
५: ज़ात-इर्क़: आज
कल इस का नाम “अज्ज़ुरैबियः” है, मक्कः यहाँ से १०० किलोमीटर है, आज कल यहाँ से मक्कः के लिए कोई सड़क
मार्ग नहीं है.
यह मीक़ात हैं,जो इन जगहों
से गुजरें, उस से पहले एहराम पहन लें, और वहाँ से गुजरते हुए हज व उमरा की निय्यत
करें, जो गाँव या शहर मीक़ात के अंदर हैं,जैसे जेद्दा और मक्कः, तो यहाँ के लोग
अपने घर से ही एहराम बांधेंगे.
एहराम:मीक़ात पर पहुँच कर स्नान से फारिग होने के बाद मर्द हज़रात
एहराम (बिगैर सिला हुआ एक सफ़ेद चादर और तहबंद)पहनेंगे, अलबत्ता चप्पल या जूता ऐसा
हो जिस से आप का टखना न ढके.औरतें अपना आम लिबास पहनेंगी, औरतों का लिबास चुस्त न
हो,ऐसा भी न हो जो बे-पर्दा करदे, या मर्दों जैसा लिबास हो, औरतों के लिए लिबास का
रंग खास नहीं, किसी भी रंग के कपडे पहन सकती हैं, औरतें नक़ाब पहनेंगी लेकिन चेहरा
और हथेलियों को खुला रख्खेंगी, जब अजनबी मर्दों का सामना हो तो अपने चेहरों को
अपनी ओढ़नी या किसी कपड़े से ढांक लेंगी. जैसा कि अस्मा बिन्ते अबुबक्र का कहना है:
हम एहराम की हालत में अपने चेहरों को अजनबी मर्दों के सामने ढांके रखते थे.
F एहराम पहनने के बाद हाजी अपने दिल में उमरह की
निय्यत करेगा, और कहे: लब्बैका उम्रतनلبيك عمرة लब्बैक पुकारना निय्यत नहीं है.
F एहराम पहनने के बाद कोई खास नमाज़ साबित नहीं है, अलबत्ता सुन्नत यह है किसी भी
फ़र्ज़ नमाज़ के बाद एहराम पहने, यह अफज़ल है, नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने ऐसा ही किया था.
F जो शख्स जहाज़ से सफर कररहा
हो, जब वह मीक़ात के बराबर पहुंचे, वहाँ एहराम पहन कर निय्यत करले, या जहाँ से आप
उड़ान भरें, वहीँ से एहराम बाँध लें, अलबत्ता निय्यत मीक़ात से ही करें, जिस की
सूचना जहाज़ पर दी जाती है.
F एहराम पहनने और निय्यत के
बाद हाजी को चाहिए कि वह अधिक से अधिक लब्बैक पुकारता रहे, तल्बिया इस तरह
पुकारें: {लब्बैका अल्लाहुम्मा लब्बैक लब्बैका लाशरीका लका लब्बैक, इन्नल-हमदा
वन-नेमता लका वल-मुल्क, लाशारीका लक} तर्जुमः:[हाज़िर हूँ ऐ अल्लाह! हाज़िर हूँ,
हाज़िर हूँ ऐ परवरदिगार! तेरा कोई साझी नहीं, मैं हाज़िर हूँ, बे-शक हमदो-सना और
नेमत व बादशाही तेरे लिए ही ज़ेबा है, और तेरा कोई शरीक नहीं है.] अलबत्ता औरतें धीमी
आवाज़ में पुकारेंगी.
एहराम की हालत में वर्जित(मना) चीज़ें: एहराम की हालत में कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिन का करना वर्जित (मना)है:
*अपने बाल या नाख़ून काटना * एहराम के कपड़ों या जिस्म में खुशबु मलना
*अपने सिर को किसी चीज़ से ढांकना, अलबत्ता छाता परयोग करसकते हैं * बीवी से
हमबिस्तर होना *उत्तेजिक हो कर बीवी से मुबाशिरत करना या बोसा लेना *सिले हुए कपड़े
पहनना सिर्फ मर्दों के लिए मना है, औरतों के लिए नहीं *खुश्की के जानवरों का शिकार
करना जैसे: हि़रण, खरगोश, कबूतर वगैरह
F जिस किसी से इन वर्जित
(मना) चीज़ों में भूल कर या जानकारी न होने की स्तिथि में कोई कार्य होगया, तो उस
पर न कोई गुनाह है, न ही फिदया.
तवाफ: हाजी जब
खाना-ए-काबा पहुंचें तो लब्बैक कहना बन्द
करदें और अपने एहराम की चादर इस तरह पहन लें कि दायाँ कंधा खुला हो और बायाँ ढका
हो, यानी एहराम की चादर को अपने दाएँ कंधे के नीचे बगल से निकालें और बाएं कंधे पर
डाल दें. फिर अगर आसानी से मौक़ा मिले तो अपने दाएँ हाथ से हजरे-अस्वद को छुएं, बोसा
दें, अगर भीड़ की वजह से मौक़ा न मिले तो सिर्फ अपने दायें हाथ से हजरे-अस्वद की ओर
इशारा करते हुए अल्लाहु अकबर कहें और अपना तवाफ़ शुरू करदें, याद रहे सात चक्करों
में से हर चक्कर हजरे-अस्वद से शुरू होगा और वहीँ जाकर खतम होगा,और हर चक्कर में
हजरे-अस्वद की ओर इशारा करके अल्लाहु अकबर कहेंगे, इसी तरह अंतिम चक्कर खतम होने
पर भी अल्लाहु अकबर कह कर हजरे-अस्वद की ओर इशारा करेंगे.
F हाजी तवाफ करने से पहले
वज़ु करले, तवाफ के दौरान अगर वज़ु टूट जाए तो दोबारा वज़ु करके वहीँ से बाक़ी हिस्सा पूरा करे जहाँ से उस
ने तवाफ छोड़ा था.
Fरुकने-यमानी: जब आप चक्कर
लगाना शुरू करेंगे तो चक्कर पूरा होने से पहले वाले काबा के कोने को रुकने-यमानी
कहते हैं, अगर मौक़ा मिले तो इस का छूना बेहतर है, वर्ना दूर से ही गुज़र जाएँ, वहाँ
तकबीर नहीं कहेंगे और न ही हाथ हिलाएंगे, अलबत्ता रुकने-यमानी और हजरे-अस्वद के
बीच चलते हुए यह दुआ खूब पढनी चाहिए: रब्बना आतिना फिद-दुन्या हसनः , व फिल-आखिरते
हसनः ,व किना अज़ाबन्नार (ऐ परवरदिगार! तू हमें दुन्या व आखिरत में नेकियों और
भलायिओं से नवाज़, और जहन्नम के अज़ाब से सुरक्षित रख.)
F तवाफ के दौरान कोई खास
ज़िक्र नहीं है, आप क़ुरान की तिलावत भी कर सकते है और मस्नून दुआएं भी पढ़ और मांग
सकते हैं.
F मर्द हाजियों के लिए
सुन्नत है कि वे तवाफ के शुरूआती तीन चक्करों में थोड़ा तेज़ चलें, लेकिन अगर भीड़,
एक दूसरे से टकराने, या धक्का-मुक्की का डर हो, तो आम चाल ही चलें.
F तवाफ पूरा करने के बाद
हाजी मक़ामे-इब्राहीम के पास जाए, दो रकात नमाज़ पढ़े, पहली रकात में “क़ुल या अय्युहल-काफिरून” और दूसरी रकात में “क़ुल हुअल्लाहू अहद” पढ़े. भीड़ की वजह से मक़ामे-इब्राहीम के पास नमाज़
पढनी मुश्किल हो तो हरम शरीफ में कहीं भी पढ़ लें, जाइज़ है.
Fदो रकात के बाद आप अपने एहराम की चादर दुरुस्त
करेंगे, यानी अब दोनों कन्धों को ढांक लेंगे, उस के बाद हाजी को अगर आसानी से मौक़ा
मिल जाए तो ज़मज़म का पानी पिए, यह सुन्नत है.
सई: (दौड़ लगाना) हाजी अब सफा
की तरफ रुख करेगा और वहाँ पहुँचने पर अगर यह आयत पढ़ सके तो पढ़ले: إِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِنْ شَعَائِرِ اللَّهِ فَمَنْ
حَجَّ الْبَيْتَ أَوْ اعْتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِ أَنْ يَطَّوَّفَ بِهِمَا
وَمَنْ تَطَوَّعَ خَيْرًا فَإِنَّ اللَّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ “इन्नस्सफा वल-मर्वता मिन शआइरिल्लाहे, फमन हज्ज्ल-बैता अवि-तमरा फला जुनाहा
अलैहे अयय्त्तौवफा बिहिमा व मन ततौवआ खैरन फइन्नल्ल्लाहा शाकिरून अलीम”
तर्जुमा: बेशक सफा-मरवा अल्लाह की निशानियों में से हैं, जो
अल्लाह के घर का हज या उमरह करे तो उन्हें चाहिए कि तवाफ़ के साथ सफा-मरवा का सई
करें, जो भलाई और सवाब के लिए नफ्ली अदा करें तो अल्लाह तआला शुक्रगुज़ार है इन
बन्दों का, और वोह खूब जानने वाला है.
आयत पढ़ने के बाद हाजी कहे:”अब्दओ बिमा बदअल्लाहु बिही” हाजी सफा पर
खानए-काबा की तरफ मुंह करके अपने दोनों
हाथों को उठाये और बुलंद आवाज़ से यह ज़िक्र पढ़े: “अल्लाहु अकबर
अल्लाहु अकबर, लाइलाहा इल्लल्लाहू वह्दहू ला शरीका लहू, लहुल-मुल्को व लहुल-हम्दो,
वहुआ अला कुल्ले शैइन क़दीर, लाइलाहा इल्लल्लाहू वह्दहू अन्जज़ा वादहु,व नसर
अब्दहू,व हज़मल-अह्ज़ाबा वह्दहू” इस को पढ़ने के बाद हाजी खामोश आवाज़ में जो भी दुआ माँगना
चाहे, माँगे. इस परकार इस ज़िक्र को शुरू में तीन बार पढ़ना सुन्नत है.
Fहाजी अब मरवा की तरफ दौड़ लगायेगा, थोड़ा आगे चलने
पर दो हरे रंग की लायटिंग होगी, इन दोनों लाइटिंग के दरम्यान तेज़ दौड़ लगानी चाहिए,
परन्तु औरतें आम चाल चलेंगी, हज के दिनों में सफा और मरवा के दरम्यान बहुत भीड़
होती है, वहाँ तेज़ गति से चलना बहुत मुश्किल होता है, इस लिए भीड़ में आम लोगों की
तरह ही चलें.
F मरवा पहुँचने पर आप की एक
दौड़ पूरी होजायेगी, वहाँ पहुँच कर वही दुआ पढ़ें जो आप ने क़िबला की तरफ मुंह कर के
सफा पर पढ़ी थी, इसी तरह आप सातों चक्कर पर दोनों जगहों पर वही दुआएं पढेंगे जिसे
ऊपर लिखा गया है.
F सई(दौड़ लगाने) के दौरान जो
कुछ भी आप दुआ माँगना चाहें, मांगें, अल्लाह का ज़िक्र करें, और अगर क़ुरआन की
तिलावत करना चाहें तो करसकते हैं.
F सई और तवाफ के दौरान अगर
नमाज़ का वक्त होजाए, तो अपने स्थान पर ही पढ़ लें, और नमाज़ के बाद वहीँ से सई या
तवाफ दोबारा शुरू करदें.
F सई चार मंज़िला बिल्डिंग का
नाम है, और खूब कुशादा है, किसी भी फलोर पर जाकर सई आसानी से की जासकती है,
अलबत्ता पहली मंजिल पर भीड़ कुछ ज़्यादः होती है.
बालों का मुंडवाना या कटवाना: सई से फारिग होने के बाद हाजी अपने बालों को मुंडवाए या कटवाए, सिर के बालों
का मुंडवाना अफज़ल है, लेकिन अगर हज का वक्त करीब हो तो हाजी के लिए बेहतर है कि
वोह बालों को कटवाएं, मुंडवाएं नहीं.
F याद रहे बालों को कटवाते
वक्त पूरे सिर के बाल कटने चाहिए.
F औरतें सिर्फ ऊँगली के पोर
के बराबर अपने बालों को कटवाएंगी.
F अब उमरह मुकम्मल होगया है,
हाजी साहब अपने एहराम उतार दें, आम लिबास पहनें, यहाँ तक कि जिल-हिज्जा कि आठ
तारिख आजाये, और उस दिन हाजी अपने होटल से हज के लिए एहराम बांधेगा.
आठवीं जिल-हिज्जः आठवीं जिल्हिज्जः को “यौमुत-तर्वियः” कहते हैं. इस रोज़ हाजी नहा-धो कर अपने बदन में खुशबु लगा कर एहराम पहनेगा और
हज की दिल में निय्यत करेगा और कहेगा: “अल्लाहुम्मा लब्बैका हज्जन” इस के बाद
तल्बिया “लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक” पुकारना शुरू
करेगा, और मिना के लिए निकल पड़ेगा, वहाँ ठहरेगा, जोहर, अस्र, मगरिब, इशा और नवीं
जिल्हिज्जः की फज्र की नमाज़ अदा करेगा, चार रकात वाली नमाजें दो-दो रकात करके पढ़ी
जायेंगी, हाजी साहब के लिए बेहतर होगा कि वोह अपने खेमा में जमात के साथ नमाज़ अदा
करें.
नवीं जिल्हिज्जः नवीं जिल्हिज्जः के सूर्यादय के बाद हाजी मैदाने-अरफा के
लिए रवाना होजाए,यही सुन्नत का तरीका है, लेकिन कुछ मुअल्लिम अपने हाजियों को रात
ही में अरफा पहुंचा देते हैं, यह भी जाइज़ है.
F अब मक्कः, मिना, मुज्दलिफा,और अरफा को मेट्रो ट्रेन सर्विस से जोड़ दिया गया है,
हाजी साहिबान अब इस का इस्तेमाल करसकते हैं, १२० रियाल का टिकेट पूरे हज सीज़न के
लिए खरीदा जा सकता है.
F हाजियों के लिए सब से अहम
दिन आ पहुंचा है, जिस के बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया:”अरफा ही हज है”. जो शख्स अरफा नहीं पहुँच सका, उसका हज होगा ही
नहीं. मैदाने-अराफात में ज़ोहर के समय सउदीअरब के मुफ्ती-आज़म तमाम हाजियों को खिताब
करते हैं, जिस में अरफा के दिन के कार्य, ज़िक्र-व-अज़्कार और मुसलमानों के सुधार व
तक़वा के विषय पर भाषण होता है, बहुत सारे खेमा वाले रेडियो हारन की व्य्वस्था करते
हैं, लेकिन अगर इस का इन्तिजाम आप के खेमे में न हो, तो आप अपने को ज़िक्र-व-अज़्कार
में मशगूल रख्खें.
F मैदाने-अराफात में मस्जिदे-नमिरह के पास बैठना सुन्नत है,
लेकिन हाजियों की ज़बरदस्त भीड़ की वजह से हाजी हज़रात अपने खेमों में रहें, और वहीँ
इबादत व तिलावत, और रो-रो कर दुआ मांगने में व्यस्त रहें, मस्जिदे-नमिरह की तलाश
में न निकलें, वरना रास्ता से भटक जाने का डर है, अपनी हर तरह की इबादत जैसे दुआ
वगैरह में क़िबला का ख्याल रख्खें.
F खुतबा के बाद हाजी हज़रात
ज़ोहर और अस्र दो-दो रकात ज़ोहर के वक्त ही में पढ़ेंगे, इस के बाद अल्लाह के ज़िक्र व
दुआ में पुरे लगन व हिम्मत से लग जाएँ, नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया:”सब से बेहतर दुआ
अरफा के दिन का है, और ज़िक्र में सब से अफज़ल ज़िक्र अरफा के दिन “ ला इलाहा
इल्लाल्लाहू वह्दहू लाशरीका लहू, लाहुल-मुल्को व
लाहुल-हम्दो युहयी व युमीतो व हुवा अला कुल्ले शैयिन कदीर” का पढ़ना है”.
F हाजियों को अपनी दुआओं के दौरान ऊपर लिखी दुआ को भी खूब
पढ़नी चाहिए, और सूर्यास्त तक रो-रो कर दुआएं करने व अपने गुनाहों की मगफिरत तलब करने में
तेज़ी जारी रख्खें.
F सूरज डूबने से पहले
मुज्दालिफा ले जाने वाली बसें तैयार होजाती हैं, लिहाज़ा हाजियों को चाहिए कि जल्दी
से बस में अपनी सीट पर बैठ जाएँ, और वहीँ ज़िक्र-व-दुआ में मशगूल रहें, ऐसा न करने
पर होसकता है कि बस में आप को जगह न मिले या फिर छत पर सवार होना पड़ेगा. जिन लोगों
का इन्तिजाम मेट्रो-ट्रेन से है, वोह नज़दीक के स्टेशन पहुंचें गे, जहाँ ३-४ घंटे
के इन्तिज़ार पर ट्रेन में जगह मिल जायेगी और १२ बजे रात से पहले ही मुज्दालिफा
पहुँच जायेंगे. इंशाल्लाह.
F सूरज डूबने के बाद आप
मुज्दालिफा के लिए रवाना होजाएंगे, वहाँ पहुँच कर मगरिब और इशा की नमाज़ एक साथ
कस्र करके पढ़नी है, याद रहे कि मगरिब में कस्र नहीं है.
F तजरबे से यह बात सामने आई है कि अराफात से निकलते वक्त
ट्रेफिक जाम हो जाती है, और बसों के मुज्दालिफा पहुँचने में सुबह होजाती है, अगर
इस का डर हो तो रास्ते में उतर जाएँ ताकि रात का कुछ हिस्सा आप मुज्दालिफा में
पाजायें.
F अगर आप का खेमा मुज्दालिफा
में है तो आप डाइरेक्ट अपने खेमे में चले जाएँ, नमाज़ पढ़ें और सोजायें, मुज्दालिफा
दो पहाड़ों के बीच एक खुला और कुशादा मैदान है जहाँ तमाम हाजी खुले आसमान के नीचे
सोते हैं.
F मुज्दालिफा में फज्र की
नमाज़ के बाद अगर मुमकिन होसके तो मस्जिद “अल्मशअरुल-हराम” के पास क़िबला मुंह करके खूब दुआएं करनी चाहियें.
दसवीं जिल्हिज्जः मुज्दालिफा में फज्र के बाद जब सुबह की सफेदी खूब फैल जाए,
तो हाजी साहिबान वहाँ से मिना केलिए निकल पड़ें.
F कमज़ोर मर्द व औरतों के लिए
दो-तिहाई रात के बाद यानी फज्र से पहले मिना की तरफ निकलना जाइज़ है.
F मिना की तरफ लौटते हुए
रास्ते में ज़्यादः से ज़्यादः तल्बियः (लब्बैका अल्लाहुम्मा लब्बैक) पुकारना चाहिए.
F अब बड़े शैतान को कंकरियां
मारने की बारी है, आज ईदुल-अज़हा का दिन है, सूरज निकलने के बाद आप सात कंकरियां
लें (कंकरियां चने की साइज़ की हों).
F शैतान को जहाँ कंकरियां
मारी जाती हैं वह जगह मक्कः से मिला हुआ है, जमरात पर पाँच मंज़िला बड़े पुल बनाये
गए हैं, हर एक का रास्ता अलग है, अब तो इलेक्ट्रिकल सीढ़ियों ने हाजियों की थकान कम
करदी है. कमज़ोर हाजी भी कंकरी मारने की हिम्मत कर सकते हैं, आप जब कंकरियां मारने
निकलेंगे तो एक लंबा टीन-शेड दिखाई देगा, इसी टीन-शेड के नीचे होजायें, कुछ दूर
चलने के बाद आप के सामने जमरात होगा, आज आप को सिर्फ बड़े शैतान को कंकरियां मारनी
हैं, सब से पहले रास्ते में छोटा, फिर मंझला, फिर बड़ा शैतान होगा, जमरात खूब लंबी
चौड़ी दीवारों का नाम हैं, उन के इर्द गिर्द बड़ा हौज़ बना हुआ है, आप की कंकरी अगर
हौज़ में गिरजाती है, तो गोया कि आप ने कंकरी मार दी है, हर कंकरी अल्लाहु-अकबर कह
कर मारेंगे.
F कंकरी मारने के लिए हौज़ के
आखिरी सिरे पर जाएँ वहाँ भीड़ कम होती है, बीमार व कमज़ोर हाजी अपने किसी क़रीबी को
कंकरी मारने के लिए वकील बना सकते हैं, जिस को वकील (ज़िम्मेदार) बनाया गया हो, वह
पहले अपना हिस्सा मारेगा, फिर दूसरों के हिस्से की कंकरियां मारे गा.
F अब क़ुर्बानी की बारी है,
आप को खुद ज़बह करने का मौक़ा मिलना मुश्किल है, इस लिए अपने अपने देश से मक्कः
पहुँचते ही हरम के सामने बैंक अल-राजिही, या दूसरी रजिस्टर्ड संस्थाओं के काउंटर
खुले मिलेंगे, वहाँ क़ुर्बानी की रकम अदा कर के रसीद हासिल करलें. इस तरह काउंटर
जमरात के आस पास भी मिलेंगे. फर्जी एजेंटों से होशियार रहें.
F कंकरियां मारने के बाद
अपने बालों को मुंडवा लें, प्यारे नबी (स.अ.व.) ने सिर मुंडवाने वाले हाजी के लिए
तीन मरतबा मगफिरत की दुआ फर्माइ है, जबकि कटवाने वाले केलिए एक मरतबा दुआ की है,
महिलायें अपने बालों को उँगलियों के पोर के बराबर काट लेंगी.
F शैतान को कंकरियां मरने और
बाल मुंडवाने के बाद हाजी हलाल होजाता है, अब अपना एहराम उतार देगा, और वह सारे
काम कर सकता है जो एहराम की हालत में मना था, सिवाए पत्नियों से मुलाक़ात. इस लिए
कि पत्नियाँ तावाफे-इफाज़ा के बाद ही मुलाक़ात के लिए हलाल होंगी.
F अब हाजी तावाफे-इफाज़ा के
लिए मस्जिदे-हराम का रूख करेगा, जहाँ वह खनाए-काबा का तवाफ करेगा, और सफा-मरवा के
दरम्यान सई करेगा, तवाफ़ व सई उसी तरह करेगा, जिस तरह उमरा के लिए किया गया था.
F तावाफे-इफाज़ा के बाद हाजी
पूरी तरह हलाल होजाए गा. अब वह अपनी पतनी से भी मुलाक़ात करसकता है.
F याद रहे कि १० जिल्हिज्जः
से १२ ज़िल्हिज्जः तक की रातें मिना में ही गुज़ारें, कोई मक्कः जाकर अपने होटल में
रात न गुज़ारे, वरना दम (जानवर का ज़बीहा) देना पड़ेगा, अगर कोई १३ को कंकरी मारना
चाहता है तो १३ की रात भी मिना में ही गुज़ारेगा.
ग्यारहवीं जिल्हिज्जः अगर हाजी तावाफे-इफाज़ा दसवीं जिल्हिज्जः को न करसका तो उस के बाद वाले दिनों
में तावाफे-इफाज़ा करसकता है.
F मिना में आप का विश्राम
जारी रहेगा, आज के दिन ज़ोहर के बाद छोटे, मंझले, और बड़े शैतान को सात सात कंकरियां
मारेंगे, हर कंकरी के साथ अल्लाहु-अकबर कहेंगे. छोटे और मंझले शैतान को कंकरी
मारने के बाद दोनों जगह क़िबला मुंह होकर हाथ उठा कर अल्लाह से दुआ मांगेंगे, जो भी
दुआ मांगे, इंशाल्लाह कबूल होगी, अलबत्ता बड़े शैतान को कंकरी मार कर आगे निकल
जाएँ, वहाँ न रुकें और न ही दुआ मांगें.
बारहवीं जिल्हिज्जः सूरज के ढलते ही(यानी ज़ोहर के वक्त) फिर आप कंकरियां मारने निकलेंगे, सीरिअल
के साथ छोटे, मंझले, और बड़े शैतान को सात सात कंकरियां मारेंगे, हर कंकरी के साथ
अल्लाहु-अकबर कहेंगे. छोटे और मंझले शैतान को कंकरी मारने के बाद दोनों जगह क़िबला
मुंह होकर हाथ उठा कर अल्लाह से दुआ मांगेंगे, अलबत्ता बड़े शैतान को कंकरी मार कर
आगे निकल जाएँ, वहाँ न रुकें और न ही दुआ मांगें.
तेरहवीं जिल्हिज्जः हाजी १२ वीं ज़िल्हिज्जः को कंकरियां मार कर मिना छोड़ सकता है, और जो लोग १३ तक
रुकना चाहें, तो बारहवीं ज़िल्हिज्जः की तरह १३ को भी कंकरी मार कर मक्कः लौटेंगे.
F अधिकतर हाजी साहिबान १२ ज़िल्हिज्जः को मिना छोड़
देते हैं,और यह जाईज़ है, बहुत कम हाजी १३ तक मिना में रहते हैं.
तवाफे-वदा(अंतिम बिदाई): अब हाजी साहिब के जिम्मे सिर्फ तवाफे-वदा बचा है, जब आप मक्कः छोड़ कर अपने वतन
के लिए रवाना हों, या आप का रूट मक्कः से मदीना-जेद्दा हो,यानी मक्कः दोबारा न आना
हो तो तवाफे-वदा करलें, फिर निकलें.
F तवाफे-वदा तमाम मर्द व महिला हाजियों पर वाजिब
है, अलबत्ता मक्कः से निकलते वक्त अगर महिलाओं को माहवारी आजाए तो उन पर
तावाफे-वदा वाजिब नहीं है. ऐसी स्तिथि में बिगैर तवाफ के अपने वतन वापस होंगी.
कुछ अहम मसाइल व जानकारी:
F नाबालिग बच्चों का हज होजाएगा, उस का सवाब
माता-पिता को मिलेगा, मगर हज की फर्जिय्यत उस बच्चे पर बाक़ी रहेगी, बालिग़ होने के
बाद स्तिथि अनुसार दोबारा हज करना होगा.
F हज के वह तमाम काम जिसे अदा करने में बच्चे को
परेशानी हो, तो उस की तरफ से माता-पिता या दुसरे रिश्तेदार वह काम अंजाम देंगे,
जैसे कंकरी मारना, क़ुर्बानी करना आदि ..
F हज के दिनों में अगर महिलाओं को माहवारी आजाए,
तो वे खानए-काबा के तवाफ के इलावा हज के सारे कार्य अंजाम देंगी, फिर जब वे पवित्र
होजायें तो खानए-काबा का तवाफ करेंगी .
F अगर महिलाओं को मालूम हो कि हज के अय्याम उनकी
माहवारी के दिन हैं, तो ऐसी स्तिथि में वे मेंस-रोधक दवाएँ प्रयोग करसकती हैं, जिस
में उन्हें आसानी होगी.
F वह व्यक्ति जो हज की ताक़त रखता था, मगर उस की
मौत होगई तो उस के वारिस उस के माल से उस की तरफ से हज करेंगे. इसी तरह मय्यत की
तरफ से अगर कोई सवाब पहुचाने की निय्यत से कोई क़रीबी रिश्तेदार हज करना चाहे तो
करसकता है, लेकिन पहले वह अपना हज करचुका हो.
F ऐसे बूढ़े और बीमार लोग जिन्हें स्वस्थ होने या
जिंदगी की आशा न हो, वह हज के लिए किसी को अपना बदल बना कर भेज सकता है, मगर वह
शख्स अपना हज पहले करचुका हो.
F जो हाजी क़ुर्बानी की ताकत न रखता हो, वह दस रोज़े
रख्खेगा, तीन दिन मक्कः में हज के दौरान और सात रोज़े घर वापसी पर, दस ज़िल्हिज्जा
के दिन को छोड कर रोज़े रख्खेगा.
F जो हाजी साहिबान बिगैर एहराम के जेद्दा या मक्कः
पहुँच जाएँ और उनकी निय्यत हज या उम्रे की हो, ऐसे लोगों के लिए बेहतर है कि वो
किसी क़रीबी मीक़ात तक जाएँ और वहाँ से एहराम पहनें, अगर न जासकते हों तो अपनी जगह
से एहराम बाँध लें और फिदया की शकल में एक जानवर ज़बह करके मक्कः के फकीरों में
तकसीम करदें.**मक्कः से क़रीबी मीक़ात अस्सैलुल-कबीर(ताइफ), जो ७५ कि.मी. की दूरी
पर है.**
F जो हाजी दसवीं ज़िल्हिज्जाको क़ुर्बानी या सिर
मुंडाने से पहले या उस से पहले दिनों में एहराम की हालत में अपनी बीवी से
हमबिस्तरी करेगा, उस का हज फासिद होजायेगा, उसे अगले साल दोबारा हज के लिए आना
होगा.
F जो हाजी सिर मुंडाने के बाद, लेकिन तावाफे इफाज़ा
से पहले अपनी बीवी से हमबिस्तरी करेगा, उस का हज होजायेगा, लेकिन उसे दो काम करने
होंगे: १- फिदया के तौर पर एक बकरा ज़बह कर के फकीरों में तकसीम करे. २- हुदूदे-हरम
से बाहर जाए और वहाँ अपने एहराम को फिर से पहने और निय्यत करे.
F अगर एहराम की हालत में किसी को सिर ढांकने की
ज़रूरत ही पड़ जाए, तो वह ढांक ले, और फिदया की शकल में एक जानवर ज़बह करे.
मस्जिदे-नबवी की ज़ियारत
मस्जिदे-नबवी की ज़ियारत
मुस्तहब है, ज़ियारत के लिए कोई खास मौसम या वक्त नहीं है, कभी भी वहाँ जाया जासकता
है, नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम का इर्शाद है: “तुम (इबादत की निय्यत से) सिर्फ
तीन मस्जिदों की ज़ियारत के लिए यात्रा कर सकते हो:१- मेरी मस्जिद (मदीना) २-
मस्जिदे-हराम(मक्कः)३. मस्जिदे-अक्सा (फिलस्तीन) {मुस्लिम}, बुखारी व मुस्लिम की रिवायत है कि रसूलुल्लाह
सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया:मेरी मस्जिद में एक वक्त की नमाज़ दूसरी
मस्जिदों के मुकाबले १००० नमाज़ से बेहतर है, सिवाए मस्जिदे-हराम के,
मस्जिदे-हराम मक्कःमें एक वक्त की नमाज़ का
सवाब एक लाख है.
F मस्जिदे-नबवी का मुसाफिर पहुँचने से पहले ही अधिक से अधिक
दरूद व सलाम भेजे, मदीने का शर्फ व मक़ाम दिल में बसाए, पहूंचने के बाद २ रकात नमाज़
तहय्यतुल-मस्जिद पढ़े, कोशिश करे कि रियाजुल-जन्नह में जा कर पढ़े, जिस के बारे में
नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम फरमाते हैं: मेरे घर और मिम्बर के बीच वाली जगह जन्नत
की कियारियों में से एक कियारी है. {बुखारी,मुस्लिम}अगर फ़र्ज़ नमाज़ की जमात का वक्त
हो, तो फ़ौरन जमात में शामिल होजाए.
F नमाज़ के बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की क़ब्रे-मुबारक
की ज़ियारत के लिए निकले,वहाँ पहुँचने पर कहे: अस्सालामो अलैका या रसूलुल्लाह व रहमतुल्लाहे
व बरकातुहू , फिर दरूद शरीफ पढ़े, इस के बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के पहलु
में हज़रत अबुबक्र(र) और हज़रत उमर(र) की कब्रों की तरफ रूख करे, और यहाँ भी
अस्सलामो अलीका या अबा बकर(र), अस्सलामो अलैका या उमर(र) कहे, अपनी ज़ुबान में इन
के लिए दुआ करे.जैसे: अल्लाह उन से राज़ी हो, और उन्हें जज़ाये-खैर अता करे.
F क़बरे-मुबारक की ज़ियारत के वक्त बा अदब रहें, आवाज़ हरगिज़
बुलंद न करें, अपने लिए दुआ मांगते वक्त क़बरे-मुबारक की तरफ हरगिज़ रूख न करे, नबी सल्लल्लाहु
अलैहे वसल्लम की क़बरे-मुबारक पर अपनी ज़रूरियात, मन्नतें और परेशानियों को दूर करने
केलिए दरखास्त न करें, यह शिर्क है, आप का हज खराब होसकता है.
F मस्जिदे-नबवी में पाँचों वक्त की नमाज़ बा-जमात अदा करने की
कोशिश करें, और अपने आप को जिक्रो-अज़्कार और नफिल नमाजों में मशगूल रख्खें.
F मस्जिदे-नबवी की ज़ियारत के बाद सुन्नत यह है कि आप
मस्जिदे-कुबा की ज़ियारत करें, और वहाँ नमाज़ पढ़ें, अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहे
वसल्लम का फर्मान है: जो शख्स अपने घर से गुस्ल या वज़ु करके निकले, और
मस्जिदे-कुबा का रूख करे, वहाँ नमाज़ पढ़े तो उस के लिए उमरह का सवाब है
{बुखारी,मुस्लिम}
F मदीना मुनव्वरह में अगर मौक़ा मिले तो बक़ी कब्रिस्तान, और
उहुद के शहीदों कि कब्रों की ज़ियारत करलेनी चाहिए, यह सुन्नत है, नबी सल्लल्लाहु
अलैहे वसल्लम इस का एहतिमाम करते थे और यह दुआ पढते: अस्सलामो अलैकुम अह्लद-दियारे
मिनल-मोमिनीना वल-मुस्लिमीना व इन्ना इन्शाअल्लाहू लाहिकून, नसअलुल-लाहा लना व
लकुमुल-आफियः.
मस्जिदे-अक़सा की
ज़ियारत
किब्लये-अव्वल, अंबिया व
रसूलों की मस्जिद, मेराज का गवाह, आज यहूदिओं के चंगुल में गिरिफ्तार है,
फिलिस्तीन के शहर अल-कुद्स में स्तिथ यह मुबारक मस्जिद नापाक इस्राइल के क़ब्जा से
आज़ादी केलिए तड़प रही है, दुनिया के वह सारे देश जिनके इस्राइल से सियासी ताल्लुक़ात हैं, उनकी अवाम मस्जिदे-अक्सा की
ज़ियारत करसकती है, भारत व नेपाल के हाजी भी मस्जिदे-अक्सा की ज़ियारत के लिए जा
सकते हैं, किन्तु टूर-आप्रेटरस इस की व्वयस्था करते हैं, और हर ताक़त रखने वाले
शख्स को वहाँ की ज़ियारत करनी चाहिए, ताकि वहाँ मौजूद फिलीस्तीनी मुसलमानों की
हौसला-अफज़ाई हो, अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम खानए-काबा के तवाफ व उमरह
के लिए मक्कः तशरीफ़ ले गए, जब कि उस वक्त मक्कः काफिरों के कंट्रोल में था, अल्लाह
जिस केलिए आसानी फर्मादे, उसे ज़ियारत करलेनी चाहिए.
F मस्जिदे—अक्सा रूए-ज़मीन पर तामीर होने वाली दूसरी मस्जिद
है, पहली मस्जिदे-हराम(मक्कः)है, और दोनों के दरम्यान सिर्फ ४० साल का वक्फा है.
हज़रत सुलैमान अलैहिस-सलाम ने जब मस्जिदे-अक्सा की नए सिरे से तामीर की तो दुआ
मांगी:ऐ अल्लाह! जो भी इस घर की ज़ियारत नमाज़ पढ़ने की निय्यत से करे तो उसे इस तरह
बख्श देना, जैसे उसकी माँ ने अभी जना हो, वहाँ एक वक्त की नमाज़ का सवाब २५० और
दूसरी हदीस के मुताबिक ५०० नमाजों के बराबर है.
F मस्जिदे—अक्सा की ज़ियारत के वक्त नबियों और नेक लोगों की क़ब्रों
की ज़ियारत करने में कोई हरज नहीं है, उन के लिए दुआए-खैर की जाए, उन से कुछ न
माँगा जाए, यह शिर्क है.
F नबियों और रसूलों की सरज़मीं पर पहुँचने के बाद क़ियामत और
मैदाने-हश्र की हौल्नाकियों का कल्पना करें, इस लिए कि मैदाने-हश्र यहीं क़ाइम
होगा, और सारी मखलूक़ यहीं सिमट आएगी.
F क़ियामत से कुछ पहले अल-कुद्स शहर इस्लामी खिलाफत की
राजधानी बन जाएगा.
F मस्जिदे-अक्सा के मुसाफिर को चाहिए कि क़िबल-ए-अव्वल की आज़ादी
और फिलीस्तीनी मुसलमानों के हक़ में खूब दुआएं करे.
F मस्जिदे-सखरा जो सुनहरे गुंबद का नाम है वो मस्जिदे-अक्सा
नहीं है,बल्कि उस के सेहन में स्तिथ है.
अल्लाह तआला हाजी साहिबान के
हज और ज़ाएरीन के नेक आमाल को क़बूल फ़रमाए, उन्हें क़ुरान व हदीस के
मुताबिक़ हज व ज़ियारत की तौफीक़ बख्शे, हर तरह के शिर्क से बचाए और उन की मग़फिरत फ़रमाए.
(आमीन) वल-हम्दो-लिल्लाहे-रब्बिल-आलमीन.
प्यारे नबी की प्यारी दुआएं
मोहतरम हाजी साहब! हज का यह
सफर दुआओं की क़बूलियत का मुबारक मौक़ा है, इसे हरगिज़ हाथ से न जाने दें, बल्कि खूब
दुआएं मांगते रहें, यह ज़िंदगी के बहुत ही क़ीमती दिन हैं, अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु
अलैहे वसल्लम का इरशाद है:” हाजी और उम्रः करने वाले पूरे सफर में जो कुछ मांगते हैं
अल्लाह उन्हें कबूल करलेता है”{इब्ने-माजः} अल्लाह पर पूरे यकीन और क़िबला मुंह करके दुआएं
करें, लोगों की हिदायत व भलाई के लिए दुआ करें और बद्दुआओं से बचें, यह हाजी की
शान नहीं. यहाँ क़ुरआन व हदीस की दुआएं लिखी जारही हैं, इन दुआओं को आप बार बार
मांगें, अपनी भाषा में भी आप दुआएं मांग सकते हैं.
दरूद शरीफ: दरूद शरीफ की बहुत फजीलत है, हमारी दुआओं की क़बुलियत का
सबब भी है, लिहाज़ा इसे हर दुआ में पढ़ें ، : अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व अला आले मुहम्मद कमा सल्लयता
अला इब्राहीम, व अला आले इब्राहीम, इन्नका हमीदुम्मजीद. अल्लाहुम्मा बारिक अला
मुहम्मद व अला आले मुहम्मद कमा बारकता अला इब्राहीम, व अला आले इब्राहीम, इन्नका
हमीदुम्मजीद.
v
رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ
النَّارِ
रब्बना आतिना फिद-दुन्या हसनः, व फिल-आखिरते
हसनः ,व किना अज़ाबन्नार
v رَبَّنَا
تَقَبَّلْ مِنَّا إِنَّكَ أَنْتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ रब्बना तक़ब्बल मिन्ना इन्नका
अन्तस-समीउल-अलीम
v رَبِّ اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِمَن دَخَلَ
بَيْتِيَ مُؤْمِنًا وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ रब्बिग-फिर्ली
व लेवालिदय्या व लिमन दखला बैतिया मुमिनन व लिल्मुमिनीना वल-मुमिनात
v رَبِّ اجْعَلْنِي مُقِيمَ الصَّلاَةِ وَمِن ذُرِّيَّتِي
رَبَّنَا وَتَقَبَّلْ دُعَاء रब्बिज-अल्नी मुकीमस्सलाते व मिन ज़ुर्रियती, रब्बना व
तक़ब्बल दुआ.
v رَبِّ هَبْ لِي مِن لَّدُنْكَ ذُرِّيَّةً طَيِّبَةً إِنَّكَ سَمِيعُ
الدُّعَاء
रब्बे हब्ली मिल-लदुनका
ज़ुर्रियतन तैयिबतन, इन्नका समीउद-दुआ.
v لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنْتُ مِنَ الظَّالِمِينَ
ला-इलाहा इल्ला अन्ता
सुब्हानका, इन्नी कुन्तो मिनज़-ज़ालिमीन.
v رَبِّ اشْرَحْ لِي صَدْرِي وَيَسِّرْ لِي أَمْرِي रब्बिश-रहलि
सदरी व यस्सिर ली अम्री.
v رَبَّنَا أَفْرِغْ عَلَيْنَا صَبْراً وَثَبِّتْ أَقْدَامَنَا وَانصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ रब्बना
अफ़रिग अलैना सब्रन व सब्बित अक्दामना वन्सुरना अलल-कौमिल-काफिरीन.
v رَبَّنَا لاَ تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا
مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً إِنَّكَ أَنتَ الْوَهَّابُ रब्बना ला तुज़िग कुलूबना बादा इज़ हदैतना व हब लना
मिल-लदुनका रहमतन, इन्नका अन्तल-वह्हाब.
v रब्बे अउज़ो बिका मिन
हमज़ातिश-शयातीने, व अउज़ो बिका रब्बे अय-यह्ज़ोरून.
v रब्बे ज़िदनी इल्मा.
v رَبِّ
هَبْ لِي حُكْمًا وَأَلْحِقْنِي بِالصَّالِحِينَ रब्बे हब्ली हुक्मन व अल्हिक्नी बिस्-सालिहीन.
v رَبَّنَا
هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا
لِلْمُتَّقِينَ إِمَاماً रब्बना हब लना मिन अज़वाजिना व ज़ुर्रियातिना कुर्रता आयुनिन,
वजअल्ना लिल्मुत्तक़ीना इमामा.
v رَبَّنَا
لاَ تُؤَاخِذْنَا إِن نَّسِينَا أَوْ أَخْطَأْنَا رَبَّنَا وَلاَ تَحْمِلْ
عَلَيْنَا إِصْرًا كَمَا حَمَلْتَهُ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِنَا رَبَّنَا وَلاَ
تُحَمِّلْنَا مَا لاَ طَاقَةَ لَنَا بِهِ وَاعْفُ عَنَّا وَاغْفِرْ لَنَا
وَارْحَمْنَآ أَنتَ مَوْلاَنَا فَانصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ रब्बना ला तुवाखिज़ना
इन्नसीना औ अख्ताना, रब्बना वला तहमिल अलैना इस्रण कमा हमल्तहू अलल-लज़ीना मिन
क़बलिना, रब्बना वला तुहम्मिलना माला ताक़ता लना बिही, वाफ़ो अन्ना, वग़फ़िर लना, वर्हमना, अन्ता मौलाना,
फन्सुर्ना अलल-कौमिल-काफिरीन.
v अल्लाहुम्मा इन्नी अस-अलुकल-हुदा
वत्तुक़ा, वल-अफ़ाफा वल-गिना.
v या मुक़ल्लिबल-कुलूबे
सब्बित क़ल्बी अला दीनिका.
v रब्बिग्-फिर्ली ज़ंबी
कुल्लहू दिक्क़हू व जिल्लहू, अव्वलहू व आखिरहू, सिर्रहू व अलानिय्यतहू.
v अल्लाहुम्मा इन्नी अउज़ो
बिका मिनल-अजज़े, वल-कस्ले, वल-जुब्ने, वल-हरमे, वल-बुख्ले, व अउज़ो बिका मिन
अज़ाबिल-क़ब्रे, व मिन फितनतिल-महया वल-ममात.
v अल्लाहुम्मा अइन्नी अला
ज़िक्रिका व शुक्रिका व हुस्ने-इबादतिका.
v اللَّهُمَّ
اكْفِنِي بِحَلَالِكَ عَنْ حَرَامِكَ، وَأَغْنِنِي بِفَضْلِكَ عَمَّنْ سِوَاكَ अल्लाहुम्मक-फ़िनी बे-हलालिका अन हरामिका व अग़निनी
बे-फज्लिका अम्मन सिवाक.
v رَبِّ أَنِّي مَسَّنِيَ وَأَنتَ
أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ रब्बे अन्नी मस्सनियज़-ज़ुर्रो व अन्ता अर्हमुर-राहिमीन.
v अल्लाहुम्मा इन्नी
असअलूका इल्मन नाफिअन व रिज्क़न वासिअन व शिफाअन मिन कुल्ले दायिन.
महत्त्वपूर्ण फोन नंबर
£ जेद्दह इंडियन काउंसलेट:
+966-2-6578313 हाजी साहिबान की तफसील मालूम करने केलिए इस वेबसाईट
पर जाएँ: www.cgijeddah.com
इंडियन हज मिशन
मक्कः 02-6520072
इंडियन दूतावास
रियाज़: 01-4884697, 4884144
£नेपाली दूतावास रियाज़: 01-4195300
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